
कारगिल की जंग और पाकिस्तान के खिलाफ भारत को मिली एक और फतह को 22 साल हो गए हैं। वह मई 1999 में गर्मियों का वक्त था, जब भारतीय सेना को कारगिल में पाकिस्तानी सैनिकों की घुसपैठ का पता चला था। तब पाकिस्तान की सेना की कमान जनरल परवेज मुशर्रफ के हाथों में थी और अब तक यह भी स्पष्ट हो चुका है कि कारगिल में घुसपैठ का तानाबाना पाक सेना प्रमुख ने ही बुना था। लेकिन भारत के वीर सपूतों के हौसले पाकिस्तान के नापाक मंसूबों पर भारी पड़े और भारत ने लगभग हारी हुई बाजी जीत ली।
भारतीय सेना को कारगिल में घुसपैठ का पता चरवाहे से लगा था, जो अपने मवेशियों चराने के लिए उधर गया हुआ था।उन्होंने इसकी सूचना नीचे आकर भारतीय सैनिकों को दी। पाकिस्तानी सैनिकों को भी इसकी भनक लग चुकी थी कि चरवाहों ने उन्हें देख लिया है, लेकिन वे यह सोचकर निश्चिंत हो गए कि वे सादी वर्दी में हैं और चरवाहों के लिए उन्हें पहचान पाना संभव नहीं। हालांकि खतरे को भांपकर एक बार उनके मन में आया कि उन्हें बंदी बना लिया जाए, लेकिन बर्फ से ढके पहाड़ में बनाए बंकरों में रशद की कमी एक बड़ी समस्या थी, जिसकी वजह से उन्होंने ऐसा नहीं किया।चरवाहे ने जब नीचे उतरकर भारतीय सेना को ऊपर संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सूचना दी तो सैनिकों को एक बार के लिए यकीन नहीं हुआ, क्योंकि वे पहले वहां का मुआयना कर आ चुके थे, जिसमें उन्हें कुछ भी संदिग्ध नहीं लगा। उन्हें खुफिया सूत्रों से भी ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली थी। लेकिन चरवाहे की बात को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता था और ऐसे में सैनिकों की एक टीम उसे साथ लेकर पहाड़ में ऊपर उस स्थान पर पहुंची, जहां से दूरबीन की मदद से उन संदिग्ध लोगों और उनकी गतिविधियों को देखा जा सकता था, जिसके बारे में चरवाहे ने जिक्र किया था।भारतीय वायु सेना और बोफोर्स तोपों की मदद से पाकिस्तानी ठिकानों को निशाना बनाया गया, जिसके बाद पाकिस्तान का संभल पाना मुश्किल हो गया और अंतत: 26 जुलाई की तारीख भी आई, जब भारत ने एक बार फिर पाकिस्तान के खिलाफ जीत की वही इबारत लिखी, जो इससे पहले 1965 और 1971 के युद्ध में भी देखने को मिली थी
More Stories
ईद-उल-फितर के मद्देनजर रखते हुए थाना प्रभारी ने किया ईदगाहों का निरीक्षण
शराब तस्करों पर भारी पड़ रही ज़िला आबकारी अधिकारी वरुण कुमार की रणनीति
खजूरी हत्याकाण्ड से त्यागी समाज में भारी आक्रोश